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> ब्लॉग > कोरोना जैसी महामारी फैलने पर क्या है पैगम्बर हजरत मोहम्मद (स०) का आदेश, जिस पर दुनिया कर रही है अमल।

कोरोना जैसी महामारी फैलने पर क्या है पैगम्बर हजरत मोहम्मद (स०) का आदेश, जिस पर दुनिया कर रही है अमल।

एо अहमद
एо अहमद
एо अहमद
लेखकएо अहमद
Founder and Editor
मैं आफताब अहमद इस साइट पर एक लेखक हूं, मुझे विभिन्न शैलियों और विषयों पर लिखना पसंद है। मुझे ऐसा निबंध और ब्लॉग लिखना अच्छा लगता...
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Published: 13/06/2025
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7 मिनट में पढ़ें

2020 में शुरू हुई COVID-19 महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। इस संकट से निपटने के लिए, सरकारों और वैज्ञानिकों ने कई उपाय अपनाए, जैसे लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग, और बार-बार हाथ धोना। आश्चर्यजनक रूप से, ये उपाय 1400 साल पहले पैगंबर हजरत मोहम्मद (स०) द्वारा दी गई शिक्षाओं से मेल खाते हैं। इस लेख में, हम देखेंगे कि कैसे उनकी हदीस और सुन्नत आज के समय में प्रासंगिक हैं और दुनिया अनजाने में इनका पालन कर रही है।

हाईलाइट्स
  • महामारियों पर पैगंबर (स०) की हदीस
    • ऐतिहासिक संदर्भ
  • स्वच्छता और इस्लाम
    • वजू (अब्लूशन)
    • हाथ धोने की सुन्नत
  • आधुनिक प्रासंगिकता
    • वैज्ञानिक पुष्टि
  • इस्लाम और स्वास्थ्य संरक्षण
    • तालिका: इस्लामिक शिक्षाएं और आधुनिक उपायों की तुलना
  • निष्कर्ष

महामारियों पर पैगंबर (स०) की हदीस

पैगंबर (स०) ने महामारियों से निपटने के लिए स्पष्ट मार्गदर्शन दिया। सहीह बुखारी (हदीस 5728) में दर्ज है:
“अगर तुम्हें किसी जगह में ताऊन (महामारी) की खबर मिले, तो उस जगह में न जाओ; और अगर तुम उस जगह पर पहले से मौजूद हो, तो वहां से न निकलो।”
यह हदीस क्वारंटाइन और यात्रा प्रतिबंधों की अवधारणा को दर्शाती है, जो आज COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए लागू किए गए हैं। इस शिक्षण का ऐतिहासिक उदाहरण खलीफा उमर (र०) के समय देखा जा सकता है, जब उन्होंने सीरिया में फैली महामारी के कारण वहां प्रवेश करने से इनकार कर दिया और बाकी सहाबाओं को भी जाने से मना किया था।

ऐतिहासिक संदर्भ

खलीफा उमर (र०) के समय, जब उन्हें सीरिया में ताऊन की खबर मिली, तो उन्होंने पैगंबर (स०) की हदीस का पालन करते हुए वहां न जाने का फैसला किया और लोगों जाने से रोका। यह निर्णय बाद में सही साबित हुआ, क्योंकि उस महामारी ने कई लोगों की जान ली। यह दर्शाता है कि पैगंबर (स०) की शिक्षाएं न केवल सैद्धांतिक थीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी लागू की गई थीं।

स्वच्छता और इस्लाम

इस्लाम में स्वच्छता को बहुत महत्व दिया गया है। पैगंबर (स०) ने कहा, “स्वच्छता ईमान का आधा हिस्सा है।” इस्लामिक प्रथाओं में स्वच्छता के कई पहलू शामिल हैं, जो महामारियों के दौरान विशेष रूप से उपयोगी हैं।

वजू (अब्लूशन)

मुसलमानों को पांचों नमाज से पहले वजू करना होता है, जिसमें हाथ, मुंह, नाक, चेहरा, बांह, सिर, और पैर धोना शामिल है। यह प्रक्रिया दिन में कई बार हाथ धोने की आदत को बढ़ावा देती है, जो वायरस और बैक्टीरिया को खत्म करने में प्रभावी है।

हाथ धोने की सुन्नत

पैगंबर (स०) ने विभिन्न अवसरों पर हाथ धोने की सलाह दी, जैसे:

  • सुबह उठने पर
  • खाना खाने से पहले
  • टॉयलेट से लौटने के बाद
  • सोने से पहले

उन्होंने कहा कि हाथ धोने से हाथों के कीटाणु साफ हो जाते हैं। यह सलाह आज वैज्ञानिकों द्वारा दी गई सलाह से मेल खाती है, जो कहते हैं कि साबुन से 20 सेकंड तक हाथ धोने से वायरस का प्रसार रोका जा सकता है।

आधुनिक प्रासंगिकता

COVID-19 महामारी के दौरान, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने निम्नलिखित उपायों की सलाह दी:

  • बार-बार हाथ धोना
  • सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना
  • प्रभावित क्षेत्रों में यात्रा न करना
  • मास्क पहनना और चेहरा न छूना

ये सभी उपाय पैगंबर (स०) की शिक्षाओं से मेल खाते हैं। उदाहरण के लिए:

  • लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंध: ये उस हदीस को लागू करते हैं जो महामारी वाले क्षेत्रों में आने-जाने से मना करती है।
  • हाथ धोना: यह इस्लामिक सुन्नत का हिस्सा है, जो बार-बार हाथ धोने को प्रोत्साहित करती है।
  • सोशल डिस्टेंसिंग: हालांकि इसे स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया, लेकिन बीमार लोगों से दूरी बनाए रखने की अवधारणा इस्लामिक शिक्षाओं में निहित है।

वैज्ञानिक पुष्टि

आधुनिक विज्ञान ने इन प्रथाओं की प्रभावशीलता की पुष्टि की है। उदाहरण के लिए:

  • साबुन और पानी से बार-बार हाथ धोने से वायरस और बैक्टीरिया को मारा जा सकता है।
  • क्वारंटाइन और सोशल डिस्टेंसिंग ने संक्रामक रोगों के प्रसार को धीमा करने में मदद की है।
  • मास्क पहनने से हवाई बूंदों के माध्यम से वायरस का प्रसार कम होता है।

इन वैज्ञानिक सलाहों का इस्लामिक शिक्षाओं से मेल खाना दर्शाता है कि पैगंबर (स०) का ज्ञान कितना दूरदर्शी था।

इस्लाम और स्वास्थ्य संरक्षण

इस्लाम ने स्वास्थ्य संरक्षण के लिए कई प्रथाएं शुरू कीं, जैसे क्वारंटाइन की अवधारणा। प्रसिद्ध मुस्लिम विद्वान इब्न सिना (अविसेना) ने क्वारंटाइन को औपचारिक रूप दिया, जो आज भी उपयोग में है। इस्लाम में जीवों की रक्षा को विश्वास की रक्षा के समान माना जाता है, इसलिए टीकाकरण और अन्य निवारक उपायों को प्रोत्साहित किया जाता है।

तालिका: इस्लामिक शिक्षाएं और आधुनिक उपायों की तुलना

इस्लामिक शिक्षाएंआधुनिक उपायसमानता
महामारी वाले क्षेत्र में न जाएं और न निकलें (सहीह बुखारी 5728)लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंधदोनों वायरस के प्रसार को रोकने के लिए क्षेत्रीय आवाजाही को सीमित करते हैं।
बार-बार हाथ धोना (वजू, खाना खाने से पहले, आदि)साबुन से 20 सेकंड तक हाथ धोनादोनों कीटाणुओं को हटाने में प्रभावी हैं।
बीमार लोगों से दूरी बनाए रखनासोशल डिस्टेंसिंगदोनों संपर्क के माध्यम से वायरस के प्रसार को कम करते हैं।
स्वच्छता को ईमान का हिस्सा माननाव्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वच्छतादोनों स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देते हैं।

निष्कर्ष

पैगंबर हजरत मोहम्मद (स०) की शिक्षाएं महामारियों से निपटने और स्वच्छता बनाए रखने के लिए एक व्यापक मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। ये शिक्षाएं न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि आधुनिक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में भी उपयोगी हैं। COVID-19 महामारी के दौरान, दुनिया ने अनजाने में इन शिक्षाओं का पालन किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन ज्ञान आज भी प्रासंगिक है। इन प्रथाओं का पालन करके, लोग न केवल अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि इस्लामिक विश्वास के अनुसार आखिरत में सवाब भी कमा सकते हैं।

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एо अहमद
लेखकएо अहमद
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