अहमद कथराडा, जिन्हें प्यार से “अंकल कैथी” के नाम से जाना जाता था, दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद विरोधी आंदोलन के एक प्रमुख नायक थे। 21 अगस्त 1929 को दक्षिण अफ्रीका के श्वाइज़र-रेनेके में जन्मे कथराडा के माता-पिता गुजरात के सूरत से थे। उन्होंने अपने जीवन के 26 साल और 3 महीने जेल में बिताए, जिसमें 18 साल रॉबेन आइलैंड की कुख्यात जेल में नेल्सन मंडेला के साथ गुजारे। उनकी कहानी न केवल दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता संग्राम की गाथा है, बल्कि भारत के साथ उनके गहरे सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव की भी कहानी है।
कथराडा का प्रारंभिक जीवन और राजनीति में प्रवेश
अहमद कथराडा (Ahmed Kathrada) का जन्म एक छोटे से शहर श्वाइज़र-रेनेके में हुआ था, जहाँ भारतीय मूल के लोग अल्पसंख्यक थे। उनके माता-पिता गुजरात के लचपुर गाँव से थे। बचपन से ही कथराडा ने रंगभेद की क्रूरता को करीब से देखा। मात्र 12 साल की उम्र में वे यंग कम्युनिस्ट लीग ऑफ साउथ अफ्रीका से जुड़े और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गैर-यूरोपीय संयुक्त मोर्चे के युद्ध-विरोधी अभियान में शामिल हुए।
17 साल की उम्र में, कथराडा ने 1946 में दक्षिण अफ्रीकी भारतीय कांग्रेस (SAIC) के नेतृत्व में निष्क्रिय प्रतिरोध अभियान में भाग लिया। इस अभियान में 2,000 लोग गिरफ्तार हुए, जिसमें कथराडा भी शामिल थे। यह अभियान रंगभेदी कानूनों के खिलाफ था, जो भारतीय मूल के लोगों के साथ भेदभाव करता था। उनकी यह शुरुआती सक्रियता ने उन्हें अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस (ANC) के नेताओं जैसे नेल्सन मंडेला और वाल्टर सिसुलु के करीब ला दिया।
उद्धरण: “मेरे विचार बहुसंस्कृतिवाद पर गांधीजी के इस कथन में सबसे अच्छे से व्यक्त होते हैं: ‘मैं चाहता हूँ कि सभी संस्कृतियों की हवा मेरे घर में स्वतंत्र रूप से बहे, लेकिन मैं नहीं चाहता कि कोई भी मुझे मेरे पैरों से उखाड़ दे।”
रंगभेद विरोधी आंदोलन में योगदान
1950 के दशक में, कथराडा ने SAIC और ANC के बीच सहयोग को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1952 में, उन्होंने डिफायंस कैंपेन में हिस्सा लिया, जिसमें रंगभेदी कानूनों का उल्लंघन कर गैर-कानूनी क्षेत्रों में प्रवेश किया गया। इसके परिणामस्वरूप उन्हें दो साल की जेल हुई। 1956 में, उन्हें 156 अन्य कार्यकर्ताओं के साथ राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया, लेकिन चार साल बाद सभी को बरी कर दिया गया।
1960 में ANC और अन्य रंगभेद विरोधी संगठनों पर प्रतिबंध लगने के बाद, कथराडा ने अपनी गतिविधियों को गुप्त रूप से जारी रखा। 1962 में, उन्हें हाउस अरेस्ट का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने भूमिगत होकर काम करना चुना। 1963 में, रिवोनिया ट्रायल में उनकी गिरफ्तारी हुई, जो दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

रोचक कहानी: रिवोनिया ट्रायल के दौरान, कथराडा और उनके साथियों को मौत की सजा की उम्मीद थी। लेकिन, जब उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, तो उनके साथी डेनिस गोल्डबर्ग ने अपनी माँ को लिखा, “जीवन अद्भुत है।” यह वाक्य उस समय की उनकी आशावादिता और दृढ़ता को दर्शाता है।
रॉबेन आइलैंड में जीवन: एक विश्वविद्यालय का निर्माण
रॉबेन आइलैंड, जहाँ कथराडा ने 18 साल बिताए, न केवल एक जेल थी, बल्कि यह एक “विश्वविद्यालय” बन गई, जहाँ कैदियों ने एक-दूसरे को शिक्षित किया। कथराडा ने जेल में रहते हुए इतिहास और अपराधशास्त्र में स्नातक की डिग्री सहित चार डिग्रियाँ हासिल कीं। उन्होंने और मंडेला ने जेल को एक ऐसी जगह में बदल दिया, जहाँ भविष्य के दक्षिण अफ्रीका की नींव रखी गई।
रोचक कहानी: रॉबेन आइलैंड में, रंगभेद की क्रूरता यहाँ तक थी कि काले कैदियों को छोटी टिन की थालियों में खाना दिया जाता था, जबकि भारतीय कैदियों को बेहतर थालियाँ दी जाती थीं। मंडेला को फर्श पर सोना पड़ता था, जबकि कथराडा को पलंग मिला। फिर भी, कथराडा ने मंडेला को शिक्षित करने और उनके साथ गहरी दोस्ती बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
उद्धरण: “जेल में, हमने न केवल अपने दुख साझा किए, बल्कि एक-दूसरे को शिक्षित भी किया। हमने रॉबेन आइलैंड को एक विश्वविद्यालय में बदल दिया।”
भारत के प्रति प्रेम और सांस्कृतिक जुड़ाव
कथराडा का भारत के प्रति प्रेम उनकी आत्मकथा में स्पष्ट रूप से झलकता है। उन्होंने गांधी और नेहरू की प्रशंसा की और भारत की बहुसांस्कृतिक संस्कृति को बहुत सराहा। उनकी आत्मकथा में लिखा है कि जेल में उन्हें अपने दोस्तों से भारत की यात्रा के बारे में पत्र मिलते थे, जो भारत की जीवंतता और विविधता की कहानियाँ सुनाते थे।
रोचक कहानी: कथराडा ने भारत के बारे में जो छवि उनके मन में थी, वह औपनिवेशिक प्रचार से प्रभावित थी, जिसमें भारत को गरीबी, भुखमरी और अशांति से ग्रस्त देश के रूप में दर्शाया गया था। लेकिन, उनके दोस्तों के पत्रों ने उनकी धारणा को बदला और भारत के प्रति उनकी उत्सुकता बढ़ी।
1992 में, कथराडा ने हज यात्रा के लिए मक्का की यात्रा की और भारत के प्रति अपने जुड़ाव को और मजबूत किया। 2005 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित किया गया, जो विदेश में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों के लिए सर्वोच्च सम्मान है।
उद्धरण: “भारत की बहुसांस्कृतिक संस्कृति ने मुझे हमेशा प्रेरित किया। यह एक ऐसा देश है, जहाँ विभिन्न संस्कृतियाँ एक साथ फलती-फूलती हैं।”
रंगभेद के बाद का जीवन और विरासत
1989 में जेल से रिहा होने के बाद, कथराडा ने ANC और दक्षिण अफ्रीकी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरिम नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1994 में, वे दक्षिण अफ्रीका की पहली लोकतांत्रिक संसद में सांसद चुने गए और मंडेला के राजनीतिक सलाहकार बने। उन्होंने मंडेला के मंत्रिमंडल में कोई पद स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उनका मानना था कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था, न कि पदों के लिए।¹
2008 में, कथराडा ने अहमद कथराडा फाउंडेशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य गैर-नस्लीय समाज की स्थापना और युवाओं को प्रेरित करना था। 2013 में, उन्होंने रॉबेन आइलैंड पर पश्चिमी नेताओं के साथ मिलकर मरवान बरघौती और अन्य फिलिस्तीनी कैदियों की रिहाई के लिए एक अंतरराष्ट्रीय अभियान शुरू किया।²
रोचक कहानी: 2016 में, कथराडा ने दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जैकब ज़ूमा के खिलाफ एक खुला पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों पर ज़ूमा से इस्तीफा देने की माँग की। यह पत्र उनकी साहसिकता और सिद्धांतों के प्रति निष्ठा को दर्शाता है।
उद्धरण: “मैं जानता हूँ कि अगर मैं राष्ट्रपति की जगह होता, तो मैं तुरंत इस्तीफा दे देता।”³
भारत के लिए कथराडा की प्रासंगिकता
कथराडा की कहानी भारत के युवाओं के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है। आज जब भारत में सामाजिक और धार्मिक ध्रुवीकरण की चुनौतियाँ सामने आ रही हैं, कथराडा का गैर-नस्लीय और बहुसांस्कृतिक दृष्टिकोण हमें एकता और समावेशिता का पाठ पढ़ाता है। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के बीच हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका एक मिसाल है।
रोचक कहानी: कथराडा ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के बीच एकता को गांधी के समय की सबसे बड़ी उपलब्धि माना। लेकिन, उन्होंने चिंता जताई कि भारत में बढ़ती सांप्रदायिकता दक्षिण अफ्रीका के भारतीय समुदाय को भी प्रभावित कर रही है।⁴
कथराडा की विरासत
28 मार्च 2017 को, 87 वर्ष की आयु में, अहमद कथराडा का निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा सादगी भरी थी, जैसा कि वे स्वयं थे। उनकी मृत्यु पर, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुकाने का आदेश दिया और उनके लिए विशेष राजकीय अंतिम संस्कार की घोषणा की।⁵
कथराडा की कहानी हमें सिखाती है कि साहस, समर्पण और एकता के साथ किसी भी अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी जा सकती है। भारत में, उनकी विरासत को जीवित रखने के लिए एक स्मारक की आवश्यकता है, जो न केवल उनकी उपलब्धियों को सम्मान दे, बल्कि युवाओं को प्रेरित भी करे।
उद्धरण: “स्वतंत्रता स्वर्ग से नहीं टपकी। इसे भारी बलिदान के साथ हासिल किया गया, लेकिन स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी भी आती है।”⁵
अहमद कथराडा के बारे में 20 सामान्य प्रश्न
- अहमद कथराडा कौन थे?
अहमद कथराडा दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद विरोधी आंदोलन के भारतीय मूल के नेता थे, जो नेल्सन मंडेला के करीबी सहयोगी थे। - कथराडा का जन्म कहाँ हुआ था?
उनका जन्म 21 अगस्त 1929 को श्वाइज़र-रेनेके, दक्षिण अफ्रीका में हुआ था। - उनके माता-पिता कहाँ से थे?
उनके माता-पिता गुजरात, भारत के लचपुर गाँव से थे, जो बोहरा मुस्लिम समुदाय से थे। - कथराडा ने रंगभेद विरोधी आंदोलन में कब प्रवेश किया?
उन्होंने 12 साल की उम्र में यंग कम्युनिस्ट लीग के माध्यम से राजनीति में प्रवेश किया। - कथराडा ने कितने साल जेल में बिताए?
उन्होंने 26 साल और 3 महीने जेल में बिताए, जिसमें 18 साल रॉबेन आइलैंड में। - रिवोनिया ट्रायल क्या था?
यह 1963-64 का एक ऐतिहासिक मुकदमा था, जिसमें कथराडा और मंडेला सहित आठ नेताओं को आजीवन कारावास की सजा दी गई। - कथराडा ने जेल में क्या हासिल किया?
उन्होंने जेल में चार विश्वविद्यालय डिग्रियाँ हासिल कीं, जिसमें इतिहास और अपराधशास्त्र शामिल हैं। - कथराडा की आत्मकथा का नाम क्या है?
उनकी आत्मकथा का नाम है “नो ब्रेड फॉर मंडेला: मेमोयर्स ऑफ अहमद कथराडा, प्रिजनर नं. 468/64″। - कथराडा ने भारत के बारे में क्या विचार रखे?
उन्होंने भारत की बहुसांस्कृतिक संस्कृति की प्रशंसा की और गांधी-नेहरू के आदर्शों को अपनाया। - कथराडा को भारत से कौन सा सम्मान मिला?
2005 में उन्हें प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित किया गया। - कथराडा ने ANC में क्या भूमिका निभाई?
वे ANC के राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य थे और मंडेला के राजनीतिक सलाहकार रहे। - अहमद कथराडा फाउंडेशन की स्थापना कब हुई?
इसकी स्थापना 2008 में हुई, जिसका उद्देश्य गैर-नस्लीय समाज को बढ़ावा देना था। - कथराडा ने जैकब ज़ूमा के खिलाफ क्या कदम उठाया?
2016 में, उन्होंने ज़ूमा के भ्रष्टाचार के खिलाफ एक खुला पत्र लिखकर इस्तीफे की माँग की। - कथराडा की मृत्यु कब और कैसे हुई?
28 मार्च 2017 को, मस्तिष्क में रक्त के थक्के के कारण उनकी मृत्यु हुई। - कथराडा की पत्नी कौन थीं?
उनकी पत्नी बारबरा होगन थीं, जो स्वयं रंगभेद विरोधी कार्यकर्ता थीं और 10 साल जेल में रहीं। - कथराडा ने रॉबेन आइलैंड को कैसे बदला?
उन्होंने इसे एक “विश्वविद्यालय” में बदला, जहाँ कैदियों ने एक-दूसरे को शिक्षित किया। - कथराडा का गांधी के प्रति दृष्टिकोण क्या था?
वे गांधी के बहुसंस्कृतिवाद और अहिंसा के सिद्धांतों से गहरे प्रभावित थे। - कथराडा ने फिलिस्तीनी मुद्दे पर क्या किया?
2013 में, उन्होंने मरवान बरघौती और अन्य फिलिस्तीनी कैदियों की रिहाई के लिए अभियान शुरू किया। - कथराडा की मृत्यु पर दक्षिण अफ्रीका की प्रतिक्रिया क्या थी?
राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुकाने और विशेष राजकीय अंतिम संस्कार का आदेश दिया। - भारत में कथराडा की विरासत को कैसे संरक्षित किया जा सकता है?
उनके सम्मान में एक स्मारक और शैक्षिक कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं।
यह लेख न केवल अहमद कथराडा की प्रेरणादायक कहानी को युवाओं तक पहुँचाता है, बल्कि उनकी विरासत को जीवित रखने और भारत-दक्षिण अफ्रीका के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने में भी योगदान देता है।