प्रोफेसर जैकी यी-रु यिंग (Jackie Yi-Ru Ying) एक विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक और नैनोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी शोधकर्ता हैं। वह सिंगापुर में इंस्टीट्यूट ऑफ बायोइंजीनियरिंग एंड नैनोटेक्नोलॉजी (IBN) की कार्यकारी निदेशक रही हैं और अपने वैज्ञानिक योगदान के लिए कई पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। हालांकि, उनकी इस्लाम अपनाने की कहानी भी उतनी ही प्रेरणादायक है जितना उनका वैज्ञानिक करियर। यह कहानी उनके आध्यात्मिक खोज, खुले दिमाग और सत्य की तलाश की गवाही देती है। नीचे उनकी इस यात्रा को विस्तार से बताया गया है, जो विभिन्न साक्षात्कारों और उपलब्ध जानकारी पर आधारित है।
प्रारंभिक जीवन और वैज्ञानिक करियर
जैकी यी-रु यिंग का जन्म ताइवान में हुआ था और वह एक गैर-मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ीं। उनके परिवार का धार्मिक पृष्ठभूमि पारंपरिक चीनी आध्यात्मिकता और बौद्ध प्रभावों से जुड़ा था। बचपन से ही जैकी अत्यंत बुद्धिमान और जिज्ञासु थीं। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा न्यूयॉर्क में पूरी की और फिर MIT (मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) से केमिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी प्राप्त की। उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों ने उन्हें बहुत कम उम्र में ही अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई। वह नैनोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपने नवाचारों के लिए जानी जाती हैं, विशेष रूप से बायोमेडिकल अनुप्रयोगों में।
जैकी का जीवन पूरी तरह से विज्ञान और अनुसंधान के इर्द-गिर्द घूमता था। वह एक तर्कशील और विश्लेषणात्मक दिमाग वाली वैज्ञानिक थीं, जो हर चीज को तथ्यों और सबूतों के आधार पर परखती थीं। उनकी इस विशेषता ने उन्हें न केवल विज्ञान में बल्कि उनकी आध्यात्मिक यात्रा में भी मदद की।
इस्लाम की ओर आकर्षण
जैकी यी-रु यिंग की इस्लाम अपनाने की कहानी तब शुरू हुई जब वह सिंगापुर में रह रही थीं। सिंगापुर एक बहुसांस्कृतिक समाज है, जहां विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग एक साथ रहते हैं। इस माहौल ने जैकी को विभिन्न धर्मों और विश्वासों को करीब से समझने का अवसर दिया। उनके कुछ सहकर्मी और दोस्त मुस्लिम थे, और उनके साथ बातचीत ने जैकी को इस्लाम के बारे में और जानने के लिए प्रेरित किया।
जैकी ने बताया कि उनकी इस्लाम में रुचि तब बढ़ी जब उन्होंने कुरान पढ़ना शुरू किया। एक वैज्ञानिक के रूप में, वह इस्लाम के तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रभावित हुईं। कुरान में कई आयतें हैं जो प्रकृति, ब्रह्मांड, और मानव जीवन के बारे में बात करती हैं, जो उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मेल खाती थीं। उदाहरण के लिए, कुरान में भ्रूण विज्ञान (embryology) और ब्रह्मांड के विस्तार जैसी बातें, जो आधुनिक विज्ञान के अनुरूप हैं, ने उन्हें गहराई से सोचने पर मजबूर किया।
आध्यात्मिक खोज और गहन अध्ययन
जैकी ने इस्लाम को अपनाने से पहले इस धर्म का गहन अध्ययन किया। उन्होंने कुरान का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा, हदीस (पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं) का अध्ययन किया, और इस्लामिक विद्वानों की किताबें पढ़ीं। वह इस्लाम के सिद्धांतों, जैसे एकेश्वरवाद (तौहीद), सामाजिक न्याय, और नैतिकता, से विशेष रूप से प्रभावित हुईं। एक वैज्ञानिक के रूप में, वह इस बात से आश्चर्यचकित थीं कि कैसे इस्लाम तर्क और आस्था के बीच संतुलन बनाता है।
उन्होंने इस्लाम के पांच स्तंभों—शहादा (ईमान की घोषणा), नमाज, रोजा, जकात (दान), और हज—को भी समझा। जैकी ने पाया कि ये सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत जीवन को अनुशासित करते हैं, बल्कि सामाजिक समरसता और करुणा को भी बढ़ावा देते हैं। उनके लिए, इस्लाम सिर्फ एक धर्म नहीं, बल्कि एक पूर्ण जीवन पद्धति था।
इस दौरान, जैकी ने अपने मुस्लिम दोस्तों और सहकर्मियों से भी बहुत कुछ सीखा। उनके व्यवहार, दयालुता, और समर्पण ने जैकी को इस्लाम के व्यावहारिक पहलुओं से परिचित कराया। वह इस बात से प्रभावित थीं कि कैसे इस्लाम अपने अनुयायियों को न केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि सामाजिक और नैतिक रूप से भी बेहतर बनाता है।
इस्लाम अपनाने का निर्णय
लंबे समय तक अध्ययन और आत्ममंथन के बाद, जैकी यी-रु यिंग ने इस्लाम अपनाने का फैसला किया। यह निर्णय उनके लिए केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि तर्कसंगत और बौद्धिक भी था। उन्होंने इस्लाम को एक ऐसी जीवन पद्धति के रूप में देखा जो उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक खोज दोनों को संतुष्ट करता था।
जैकी ने सिंगापुर में एक मस्जिद में शहादा (कलमा) पढ़कर इस्लाम कबूल किया। यह उनके लिए एक भावनात्मक और आध्यात्मिक क्षण था। उन्होंने कहा कि इस्लाम अपनाने के बाद उन्हें एक गहरी शांति और उद्देश्य की अनुभूति हुई। उनके लिए, यह एक नई शुरुआत थी, जहां वह अपने वैज्ञानिक कार्य को और अधिक अर्थपूर्ण ढंग से देखने लगीं।
इस्लाम अपनाने के बाद का जीवन
इस्लाम अपनाने के बाद, जैकी ने अपने जीवन में कई बदलाव किए। उन्होंने नमाज पढ़ना शुरू किया, रमजान में रोजा रखा, और इस्लामिक नैतिकता को अपने दैनिक जीवन में अपनाया। हालांकि, वह अपने वैज्ञानिक करियर में उतनी ही सक्रिय रहीं। वास्तव में, इस्लाम ने उन्हें अपने काम के प्रति और अधिक समर्पित और करुणामय बनाया।
जैकी ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि इस्लाम ने उन्हें धैर्य, विनम्रता, और दूसरों की मदद करने का महत्व सिखाया। एक वैज्ञानिक के रूप में, वह अपने शोध को मानवता की भलाई के लिए उपयोग करने के लिए और अधिक प्रेरित हुईं। उनके लिए, विज्ञान और धर्म एक-दूसरे के पूरक थे, न कि विरोधी।
प्रेरणादायक पहलू
जैकी यी-रु यिंग की कहानी कई मायनों में प्रेरणादायक है:
- तर्क और आस्था का संगम: जैकी ने इस्लाम को तर्क और विज्ञान के चश्मे से परखा। उनकी कहानी यह दर्शाती है कि विज्ञान और धर्म एक साथ चल सकते हैं।
- खुले दिमाग की ताकत: जैकी ने अपने पूर्वाग्रहों को दरकिनार कर एक नए धर्म को समझने की कोशिश की। यह उनके खुले दिमाग और सत्य की खोज की भावना को दर्शाता है।
- साहस और दृढ़ता: एक गैर-मुस्लिम पृष्ठभूमि से आकर इस्लाम अपनाना एक बड़ा निर्णय था। जैकी ने इस निर्णय को साहस और आत्मविश्वास के साथ लिया।
- मानवता की सेवा: इस्लाम अपनाने के बाद, जैकी ने अपने वैज्ञानिक कार्य को मानवता की भलाई के लिए और अधिक समर्पित किया। यह उनकी कहानी का सबसे प्रेरणादायक पहलू है।
निष्कर्ष
प्रोफेसर जैकी यी-रु यिंग की इस्लाम अपनाने की कहानी एक ऐसी यात्रा है जो बुद्धि, आस्था, और साहस का संगम दर्शाती है। एक विश्वस्तरीय वैज्ञानिक होने के बावजूद, उन्होंने अपने आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध करने के लिए इस्लाम को चुना। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सत्य की खोज में खुले दिमाग और साहस के साथ आगे बढ़ना चाहिए। जैकी की यह यात्रा न केवल मुस्लिम समुदाय के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है जो अपने जीवन में अर्थ और उद्देश्य की तलाश में है।
नोट: यह लेख उपलब्ध जानकारी और साक्षात्कारों पर आधारित है। जैकी यी-रु यिंग की निजी कहानी के कुछ पहलू गोपनीय हो सकते हैं, और इस लेख में केवल सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी का उपयोग किया गया है। यदि कोई अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध हो, तो उसे शामिल किया जा सकता है।