जमालउद्दीन अफ़ग़ानी (1838/1839–1897) उन्नीसवीं सदी के एक प्रमुख इस्लामी विचारक, सुधारक और पैन-इस्लामिक आंदोलन के प्रणेता थे। उनकी विचारधारा का मूल लक्ष्य इस्लामी दुनिया को पश्चिमी साम्राज्यवाद के खिलाफ एकजुट करना और इस्लाम को आधुनिक युग के संदर्भ में पुनर्जनन करना था। अफ़ग़ानी ने इस्लामी एकता (पैन-इस्लामिज़्म) को बढ़ावा देकर मुस्लिम समाजों को उपनिवेशवादी शक्तियों, विशेष रूप से ब्रिटिश और फ्रांसीसी साम्राज्य, के खिलाफ संगठित करने का प्रयास किया। उनके विचारों ने भारत, मिस्र, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, ओटोमन साम्राज्य और इंडोनेशिया जैसे क्षेत्रों में स्वतंत्रता और सुधार आंदोलनों को प्रेरित किया।
पैन-इस्लामिज़्म में योगदान
- इस्लामी एकता का सिद्धांत
अफ़ग़ानी ने पैन-इस्लामिज़्म को एक राजनीतिक और वैचारिक आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय (उम्मा) को एकजुट करके पश्चिमी उपनिवेशवाद का मुकाबला करना था। उनका मानना था कि इस्लामी दुनिया की कमजोरी का कारण उसका विभाजन था, और एकता ही इसे पुनर्जनन और स्वतंत्रता की ओर ले जा सकती थी। उन्होंने सुन्नी और शिया समुदायों के बीच एकता पर विशेष जोर दिया, जो उस समय एक क्रांतिकारी विचार था। उनकी यह विचारधारा इस्लाम के मूल सिद्धांतों और कुरान की शिक्षाओं पर आधारित थी, विशेष रूप से कुरान 2:256 से प्रेरित, जिसे उन्होंने अपनी पत्रिका अल-उर्वा अल-वुस्क़ा (The Indissoluble Link) के शीर्षक के रूप में चुना। अल-उर्वा अल-वुस्क़ा: 1884 में पेरिस से अपने शिष्य मुहम्मद अब्दुह के साथ मिलकर शुरू की गई यह पत्रिका पैन-इस्लामिक विचारधारा का प्रमुख मंच बनी। इसने इस्लाम के मूल सिद्धांतों की ओर लौटने और इस्लामी लोगों के बीच एकता को बढ़ावा देने का आह्वान किया। पत्रिका ने मुस्लिम समुदाय को यूरोपीय शक्तियों के खिलाफ अपनी पूर्व शक्ति को पुनर्जनन करने के लिए प्रेरित किया। - सुन्नी-शिया एकता
अफ़ग़ानी ने सुन्नी और शिया समुदायों के बीच सुलह और सहयोग को बढ़ावा देने का प्रयास किया। उन्होंने तर्क दिया कि इस्लामी दुनिया की एकता के लिए संप्रदायिक मतभेदों को नजरअंदाज करना आवश्यक है। यह विचार उस समय के संदर्भ में अभूतपूर्व था, क्योंकि सुन्नी और शिया समुदायों के बीच तनाव आम था। अफ़ग़ानी की यह पहल बाद में 20वीं सदी के इस्लामी आंदोलनों, जैसे कि ईरानी क्रांति (1979) और अन्य एकतावादी प्रयासों में परिलक्षित हुई। - वैश्विक प्रभाव
अफ़ग़ानी की पैन-इस्लामिक विचारधारा ने विभिन्न देशों में मुस्लिम समुदायों को प्रेरित किया। उदाहरण के लिए:- भारत: अफ़ग़ानी ने 1870 के दशक में भारत की यात्रा की और ब्रिटिश शासन के खिलाफ मुस्लिम समुदाय को जागृत करने का प्रयास किया। उनकी विचारधारा ने अल्लामा मुहम्मद इकबाल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, और उबैदुल्लाह सिंधी जैसे विचारकों को प्रभावित किया। उनकी प्रेरणा से भारत में खिलाफत आंदोलन (1919–1924) को बल मिला।
- मिस्र: मिस्र में, अफ़ग़ानी ने अल-अज़हर विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिए और अपने शिष्य मुहम्मद अब्दुह के साथ इस्लामी सुधार आंदोलन को गति दी। उनकी गतिविधियों ने मिस्र में राष्ट्रवादी और उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलनों को प्रेरित किया।
- ओटोमन साम्राज्य: अफ़ग़ानी ने सुल्तान अब्दुल हामिद द्वितीय को पैन-इस्लामिक नीतियों को अपनाने के लिए प्रेरित किया, जिससे ओटोमन साम्राज्य में इस्लामी एकता को बढ़ावा मिला।
- इंडोनेशिया: उनकी विचारधारा ने इंडोनेशिया में इस्लामी सुधार और उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलनों को प्रभावित किया, विशेष रूप से आधुनिकतावादी और सुधारवादी विचारकों को।
क्या हम सभ्य राष्ट्रों से उदाहरण नहीं लेंगे? आइए हम दूसरों की उपलब्धियों पर एक नज़र डालें। प्रयास से, उन्होंने ज्ञान की अंतिम डिग्री और उन्नति के शिखर को प्राप्त किया है। हमारे लिए भी सभी साधन तैयार हैं, और हमारी प्रगति में कोई बाधा नहीं है। केवल आलस्य, मूर्खता और अज्ञानता ही [हमारी] उन्नति में बाधाएँ हैं।
-जमालउद्दीन अफ़ग़ानी
उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलनों में योगदान
- पश्चिमी साम्राज्यवाद की आलोचना
अफ़ग़ानी ने पश्चिमी उपनिवेशवाद को इस्लामी दुनिया के पतन का प्रमुख कारण माना। उन्होंने ब्रिटिश और फ्रांसीसी साम्राज्यवाद की कटु आलोचना की, विशेष रूप से उनकी आर्थिक और राजनीतिक शोषण की नीतियों की। उन्होंने तर्क दिया कि पश्चिमी “उपनिवेशीकरण” वास्तव में “विनाश” और “शोषण” का पर्याय था, जो इस्लामी समाजों की स्वतंत्रता और गरिमा को नष्ट कर रहा था।- ईरान में तंबाकू आंदोलन (1891–1892): अफ़ग़ानी ने ईरान में ब्रिटिश तंबाकू रियायत के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया। यह आंदोलन, जिसे तंबाकू विरोध के रूप में जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलन था, जिसने बाद में 1905 की ईरानी संवैधानिक क्रांति की नींव रखी। अफ़ग़ानी ने नासिरुद्दीन शाह की नीतियों की आलोचना की, जिन्हें वे पश्चिमी शक्तियों के प्रति बहुत अधिक रियायत देने वाला मानते थे।
- मिस्र में इस्माइल पाशा के खिलाफ: मिस्र में, अफ़ग़ानी ने इस्माइल पाशा के प्रो-ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने फ्रीमेसनरी को एक संगठनात्मक आधार के रूप में उपयोग किया, हालांकि स्थानीय मेसन्स ने उनकी राजनीतिक गतिविधियों का विरोध किया। उनकी गतिविधियों ने तौफीक पाशा को खेदिव के रूप में स्थापित करने में मदद की।
- राजनीतिक सक्रियता और क्रांतिकारी गतिविधियाँ
अफ़ग़ानी ने केवल वैचारिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक राजनीतिक सक्रियता के माध्यम से भी उपनिवेशवाद का विरोध किया। उनकी कुछ प्रमुख गतिविधियाँ थीं:- अफ़ग़ानिस्तान: 1860 के दशक में, अफ़ग़ानी ने अमीर अब्दुर्रहमान खान के शासन में ब्रिटिश प्रभाव के खिलाफ नीतियों का समर्थन किया। हालांकि, सत्ता परिवर्तन के बाद उन्हें देश छोड़ना पड़ा।
- ईरान: नासिरुद्दीन शाह के खिलाफ उनकी आलोचना और शाह अब्दुल-अज़ीम मंदिर में सात महीने तक शरण लेने के दौरान उनके प्रचार ने जनता को उपनिवेशवादी नीतियों के खिलाफ जागृत किया। उनकी गतिविधियों ने शाह के शासन को कमजोर करने में योगदान दिया।
- शाह नासिरुद्दीन की हत्या: अफ़ग़ानी ने अपने अनुयायी मिर्ज़ा रजा किरमानी के साथ मिलकर शाह नासिरुद्दीन की हत्या की योजना बनाई, क्योंकि वे शाह को पश्चिमी शक्तियों के प्रति अत्यधिक रियायत देने वाला मानते थे। यह कृत्य उनकी क्रांतिकारी मानसिकता को दर्शाता है।
- शिक्षा और जागरूकता
अफ़ग़ानी ने शिक्षा और बौद्धिक जागरूकता को उपनिवेशवाद के खिलाफ एक हथियार के रूप में देखा। उन्होंने मुस्लिम समुदायों को आधुनिक विज्ञान और शिक्षा को अपनाने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे पश्चिमी शक्तियों के बौद्धिक और तकनीकी प्रभुत्व का मुकाबला कर सकें। उनकी यह विचारधारा विशेष रूप से भारत में अलीगढ़ आंदोलन और मिस्र में मुहम्मद अब्दुह के सुधारवादी प्रयासों में परिलक्षित हुई।
प्रमुख रणनीतियाँ
- पत्रकारिता और प्रचार
अफ़ग़ानी ने पत्रकारिता को एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उपयोग किया। अल-उर्वा अल-वुस्क़ा के माध्यम से उन्होंने इस्लामी एकता और उपनिवेशवाद-विरोधी विचारों का प्रचार किया। यह पत्रिका इस्लामी दुनिया में व्यापक रूप से पढ़ी गई और इसने मुस्लिम बुद्धिजीवियों को प्रेरित किया। - राजनीतिक संगठन
अफ़ग़ानी ने फ्रीमेसनरी जैसे संगठनों का उपयोग अपनी राजनीतिक गतिविधियों के लिए किया, हालांकि यह विवादास्पद रहा। मिस्र में, उन्होंने फ्रीमेसन लॉज को एक मंच के रूप में उपयोग करके इस्माइल पाशा के खिलाफ आंदोलन को संगठित किया। - बौद्धिक प्रवचन
अल-अज़हर विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में उनके व्याख्यानों ने युवा मुस्लिम बुद्धिजीवियों को प्रभावित किया। उन्होंने इस्लाम को तर्कसंगत और वैज्ञानिक ढांचे में प्रस्तुत करने का प्रयास किया, जिससे मुस्लिम समाज आधुनिकता को अपनाने के लिए प्रेरित हुआ।
दीर्घकालिक प्रभाव और विरासत
- भारत में प्रभाव
अफ़ग़ानी की विचारधारा ने भारतीय उपमहाद्वीप में कई प्रमुख व्यक्तियों को प्रभावित किया। अल्लामा मुहम्मद इकबाल ने उनकी पैन-इस्लामिक विचारधारा को अपनी कविता जाविदनामा में अपनाया। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपनी पत्रिकाओं अल-हिलाल और अल-बलाग के माध्यम से अफ़ग़ानी के विचारों को प्रचारित किया। उबैदुल्लाह सिंधी और अबुल आला मौदूदी जैसे विचारकों ने भी उनकी विचारधारा से प्रेरणा ली। - मिस्र में सुधार आंदोलन
अफ़ग़ानी के शिष्य मुहम्मद अब्दुह ने मिस्र में इस्लामी सुधार आंदोलन को आगे बढ़ाया, जो शिक्षा और धार्मिक सुधार पर केंद्रित था। अब्दुह ने अफ़ग़ानी की तुलना में अधिक क्रमिक सुधारों पर जोर दिया, लेकिन उनकी विचारधारा का मूल आधार अफ़ग़ानी से प्रेरित था। - 20वीं सदी के आंदोलन
अफ़ग़ानी की पैन-इस्लामिक विचारधारा ने 20वीं सदी में कई आंदोलनों को प्रभावित किया, जैसे कि:- खिलाफत आंदोलन (1919–1924): भारत में यह आंदोलन ओटोमन खलीफा की रक्षा के लिए शुरू हुआ और अफ़ग़ानी की एकता की विचारधारा से प्रेरित था।
- मुस्लिम ब्रदरहुड: मिस्र में स्थापित इस संगठन ने अफ़ग़ानी की विचारधारा को अपनाकर इस्लामी पुनर्जनन और उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलनों को बढ़ावा दिया।
- ईरानी क्रांति (1979): अफ़ग़ानी की सुन्नी-शिया एकता की विचारधारा ने बाद में ईरान में इस्लामी क्रांति को प्रभावित किया, जिसमें रुहुल्लाह खोमैनी ने इस्लामी एकता के विचार को आगे बढ़ाया।
- आधुनिकता और इस्लाम
अफ़ग़ानी ने इस्लाम को आधुनिक वैज्ञानिक और तर्कसंगत ढांचे में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। उनका मानना था कि इस्लाम स्वाभाविक रूप से तर्कसंगत है और आधुनिक विज्ञान के साथ संगत है। इस विचार ने इस्लामी आधुनिकतावाद को जन्म दिया, जिसे बाद में मुहम्मद अब्दुह, रशीद रिदा, और सर सय्यद अहमद खान जैसे विचारकों ने आगे बढ़ाया।
विवाद और आलोचना
- राष्ट्रीयता का विवाद
अफ़ग़ानी की राष्ट्रीयता (ईरानी या अफ़ग़ानी) को लेकर विवाद रहा। कुछ स्रोतों का दावा है कि वे ईरान के शिया परिवार से थे, लेकिन उन्होंने सुन्नी पहचान अपनाई ताकि इस्लामी दुनिया में व्यापक स्वीकृति प्राप्त कर सकें। इसने उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। - क्रांतिकारी रणनीति
अफ़ग़ानी की क्रांतिकारी और कभी-कभी हिंसक रणनीतियाँ, जैसे कि शाह नासिरुद्दीन की हत्या में उनकी भूमिका, विवादास्पद रहीं। कुछ आलोचकों ने उनकी रणनीतियों को अव्यवहारिक और अस्थिर माना। - मुहम्मद अब्दुह के साथ मतभेद
उनके शिष्य मुहम्मद अब्दुह ने उनकी क्रांतिकारी नीतियों की आलोचना की और शिक्षा और धीमे सुधारों पर अधिक जोर दिया। यह मतभेद पैन-इस्लामिक आंदोलन के भीतर विभिन्न दृष्टिकोणों को दर्शाता है।
निष्कर्ष
जमालउद्दीन अफ़ग़ानी का पैन-इस्लामिज़्म और उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलनों में योगदान ऐतिहासिक और वैचारिक रूप से महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने इस्लामी एकता के विचार को एक शक्तिशाली राजनीतिक और सामाजिक हथियार के रूप में प्रस्तुत किया, जिसने भारत, मिस्र, ईरान, और ओटोमन साम्राज्य जैसे क्षेत्रों में स्वतंत्रता और सुधार आंदोलनों को प्रेरित किया। उनकी पत्रिका अल-उर्वा अल-वुस्क़ा, शिक्षा पर जोर, और सुन्नी-शिया एकता के प्रयासों ने इस्लामी दुनिया में एक नई चेतना जगाई। हालांकि उनकी रणनीतियाँ और पहचान को लेकर विवाद रहे, उनकी विरासत 20वीं सदी के इस्लामी और राष्ट्रवादी आंदोलनों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। अफ़ग़ानी का जीवन और कार्य आज भी इस्लामी पुनर्जनन और स्वतंत्रता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
[…] (र.अ.) के बुलावे पर भोपाल तशरीफ़ लाए थे।अल्लामा जमालउद्दीन अफ़ग़ानी (र.अ.) सारी दुनिया के मुसलमानों में एकता व […]