23 मार्च 1931 को शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी, इसलिए इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जब गिरफ्तार कर लिया गया तो अंग्रजों के मुखबिर और दलाल, झूठी गवाह और दलीलों से सजा दिलाने के लिए कोशिश कर रहे थे और महात्मा गांधी ने भी उन्हें बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। क्यों कि अगर गांधी उन्हे बचाना चाहते तो 17 फरवरी 1931 को गांधी और इरविन के बीच जो समझौता हुआ था, गांधी इस समझौते की शर्तों में भगत सिंह की फांसी रोकना शामिल कर सकते थे, लेकिन गांधी ने ऐसा नही किया। बाद में जो कोशिश गांधी ने किया वो पर्याप्त नहीं था। ऐसे मुश्किल घड़ी में भगत सिंह, उनके परिवार और साथियों को बचाने के लिए कुछ मुसलमान आगे आए जिनका विवरण निम्न है-
भगत सिंह को सजा से बचाने की कोशिश करने वाले वे मुसलमान जिन्हे भुला दिया गया

सन् 1929 में भगत सिंह द्वारा दिल्ली केंद्रीय सभा में बम फेंकने के कारण, परिवार को अंग्रजों द्वारा दमन का भय था भगत सिंह के परिवार को शरण देने के लिए कोई आगे नहीं आया सब अंग्रेजों से डरे हुये थे। उस मुश्किल घडी मे क्रांतिकारी भगत सिंह का परिवार सख्त परेशान था , तब मौलाना हबीबुर्रहमान लुधियानवी (र.अ.) ने भगत सिंह के परिवार के सदस्यों को एक महीने तक अपने घर पे आश्रय प्रदान किया था।
सरदार भगत सिंह अपने केस की पैरवी स्वयं न्यायिक परामर्शदाता वकील आसिफ अली की मदत से कर रहे थे, जबकि अंग्रेजों की ओर से सूर्य नारायण शर्मा एडवोकेट मोर्चा संभाले हुए थे। लेकिन शोभा सिंह और शादी लाल के झूठी गवाही और अंग्रेजों के दबाव के कारण भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी की सजा सुना दिया गया।
भगत सिंह पर मुकदमा लाहौर कोर्ट में चला । इसे जल्दी निपटाने के लिए मई 1930 को स्पेशल ट्रिब्यूनल बनाया, जिसमें जस्टिस जे कोल्ड स्ट्रीम अध्यक्ष और जस्टिस जीसी हिल्टन और जस्टिस आगा हैदर सदस्य थे। ट्रिब्यूनल के हर गलत फैसले का आगा हैदर विरोध करते थे। आजादी के दीवाने शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जब फांसी की सजा दी जानी थी तो, जस्टिस आगा हैदर ने फांसी की सजा पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था। उन्होंने जवाब दे दिया कि मैं एक न्यायाधीश हूं कोई कसाई नहीं। अंग्रजों के अधिक दबाव कारण उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन हस्ताक्षर नहीं किया।
भगत सिंह, उनका परिवार और देश इन मुस्लिम क्रांतिकारियों के इस कुर्बानी को हमेशा याद रखेगा।
मैं आफताब अहमद इस साइट पर एक लेखक हूं, मुझे विभिन्न शैलियों और विषयों पर लिखना पसंद है। मुझे ऐसा निबंध और ब्लॉग लिखना अच्छा लगता है जो मेरे पाठकों को चिंतन और प्रेरणा देती हैं।
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