भारत में समय-समय पर होने वाली सांप्रदायिक हिंसा समाज के लिए गहरे जख्म छोड़ती है। ये घटनाएं न केवल जान-माल का नुकसान करती हैं, बल्कि समुदायों के बीच अविश्वास और डर को भी बढ़ाती हैं। खास तौर पर, ऐसी हिंसक घटनाओं में मुस्लिम समुदाय को अक्सर सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो साफ दिखाते हैं कि हिंसक भीड़ खुलेआम उत्पात मचाती है, और पुलिस या तो मूकदर्शक बनी रहती है या कुछ मामलों में हिंसा में शामिल दिखती है। देश के कई हिस्सों में यह स्थिति बार-बार दोहराई गई है, जहां पुलिस ने निष्पक्षता दिखाने के बजाय पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया।
हिंसा खत्म होने के बाद का मंजर और भी दुखद होता है। जो लोग अपने प्रियजनों को खोने का दर्द लेकर या संपत्ति के नुकसान की शिकायत दर्ज कराने थानों में जाते हैं, उन्हें अक्सर डांटकर भगाया जाता है या उनके खिलाफ ही मुकदमे दर्ज कर लिए जाते हैं। मुस्लिम समुदाय हर बार की तरह अपने दुख को दुनिया के सामने रखता है, लेकिन सिर्फ शिकायत करने से समाधान नहीं मिलता। जरूरी है कि भविष्य में ऐसी सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए ठोस और साहसपूर्ण कदम उठाए जाएं।
सांप्रदायिक हिंसा का मूल कारण
सांप्रदायिक हिंसा अक्सर छोटी-छोटी बातों से शुरू होती है—एक विवाद, एक झगड़ा—जो कुछ ही घंटों में भयानक रूप ले लेता है। अगर पुलिस पहले दिन सख्ती से कार्रवाई करे, तो इसे रोका जा सकता है। लेकिन बार-बार देखा गया है कि पुलिस मूकदर्शक बनकर रह जाती है। इसके पीछे दो मुख्य कारण हैं: पहला, राजनीतिक दबाव, जो पुलिस को निष्पक्ष कार्रवाई करने से रोकता है, और दूसरा, पुलिस बल में सांप्रदायिक सोच, जो निष्पक्षता को कमजोर करती है।
समाधान की राह: राजनीतिक एकजुटता
मुस्लिम समुदाय को अपनी सुरक्षा और सम्मान के लिए राजनीति में मजबूत हिस्सेदारी बनानी होगी। इसके लिए मुसलमानों को सिर्फ मुस्लिम पार्टी के उम्मीदवारों को ही वोट दें। भलें ही मुस्लिम पार्टी वह उम्मीदवार हार रहा हो और उसके जीतने के बिल्कुल भी चांस ना हो तब भी आप मुस्लिम पार्टी के उम्मीदवार को ही वोट दें। अब आप कहेंगे कि हारने वाले को वोट देने से क्या फायदा? फायदा होगा अगले चुनाव में जब किसी मुस्लिम पार्टी को पूरे मुसलमानों का वोट उसे मिला होगा तो उसका वोट प्रतिशत ज्यादा होगा जिससे दूसरी पार्टियां उससे गठबंधन करना चाहेंगी लेकिन अगर मुस्लिम पार्टी को पिछले चुनाव में बहुत काम वोट मिला होगा तो कोई पार्टी उससे गठबंधन ही नहीं करेगी। इस लिए मुसलमानों को सिर्फ मुस्लिम पार्टी या मुस्लिम पार्टी से गठबंधन की हुई पार्टी को ही वोट देना चाहिए, इससे मुसलमानों कि राजनीतिक शक्ति बढ़ेगी, हो सकता है कि आप के एक बार वोट करने से ये सफलता ना मिले लेकिन लगातार प्रयास से सफलता जरूर मिलेगी।
पुलिस में भागीदारी: एक जरूरी कदम
पुलिस बल में मुस्लिम समुदाय की मौजूदगी बढ़ाना उतना ही जरूरी है। भारत में मुस्लिम आबादी 18% है, लेकिन पुलिस में उनकी हिस्सेदारी 2% से भी कम है। इसे कम से कम 18% तक होना चाहिए। हर मुस्लिम परिवार को कोशिश करनी चाहिए कि उनके बच्चे या रिश्तेदार पुलिस या सुरक्षा बलों में शामिल हों। यह न केवल समुदाय की सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि अन्याय के खिलाफ एक ताकतवर आवाज भी देगा।
प्रेरणा और जागरूकता: शिक्षा का महत्व
कुछ लोग कहते हैं कि मुस्लिम युवाओं को नौकरी नहीं मिलती। लेकिन सवाल यह है—क्या हम उतनी मेहनत कर रहे हैं, जितनी जरूरी है? मैंने दिल्ली के मुखर्जी नगर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के दौरान देखा कि हजारों छात्रों में मुश्किल से 20 मुस्लिम लड़के थे। अगर 18% आबादी होने के बावजूद कोचिंग सेंटरों में हमारी हिस्सेदारी 1% से कम है, तो नौकरी कैसे मिलेगी? हमें अपने बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करना होगा, उन्हें पुलिस और सुरक्षा बलों में जाने के लिए उत्साहित करना होगा। यह एक कदम नहीं, बल्कि हमारी और हमारी आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा का आधार है।
आगे का रास्ता: एकजुटता और संकल्प
हमें एकजुट होकर काम करना होगा। अपनी आवाज को संसद और विधानसभाओं में बुलंद करने के लिए मुस्लिम पार्टियों को मजबूत करें। पुलिस में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाएं। हर कदम मायने रखता है। यह संदेश अपने दोस्तों और रिश्तेदारों तक पहुंचाएं। आइए, मिलकर एक ऐसा भविष्य बनाएं, जहां हमारी आवाज सुनी जाए, हमारा सम्मान सुरक्षित हो, और हमारा समुदाय ताकतवर बने।
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