रहमतुल्लाह मोहम्मद सयानी, एक प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी, का जन्म 5 अप्रैल 1848 को मुंबई में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और 1885 के प्रथम अधिवेशन में शामिल 72 प्रतिनिधियों में से दो प्रमुख मुस्लिम नेताओं में से एक थे। भारत के पहले अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त मुस्लिम के रूप में, उन्होंने 1868 में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की और बाद में कानून की पढ़ाई पूरी की।
कानूनी और सामाजिक योगदान
रहमतुल्लाह सयानी ने कानून के क्षेत्र में कई सामाजिक मुद्दों पर केस लड़े, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ ब्रिटिश सरकार द्वारा दायर मुकदमों की पैरवी की और कई लोगों को कानूनी सहायता प्रदान कर रिहा करवाया। इसके अलावा, उन्होंने टैक्स सिस्टम का गहन अध्ययन किया और भारतीय किसानों व मध्यम वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष
1896 में रहमतुल्लाह सयानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने और उन्होंने कलकत्ता में आयोजित 12वें वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में उनके द्वारा दिया गया भाषण ऐतिहासिक माना जाता है। उनके भाषण में निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल थे:
- हिंदू-मुस्लिम एकता: उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने पर जोर दिया और दोनों समुदायों के बीच भाईचारे को मजबूत करने की वकालत की।
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुटता: उन्होंने भारतीयों को अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ एकजुट होने और स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करने का आह्वान किया।
- आर्थिक सुधार: उन्होंने टैक्स सिस्टम में सुधार और किसानों के अधिकारों की रक्षा पर बल दिया।
- शिक्षा और जागरूकता: उन्होंने शिक्षा के प्रसार और जनता को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
इस भाषण को समकालीन पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया और इसे कांग्रेस के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ भाषणों में से एक माना जाता है।
राजनीतिक और प्रशासनिक योगदान
रहमतुल्लाह सयानी बंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के मेयर, बंबई लेजिस्लेटिव काउंसिल और इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे। उन्होंने अपने पदों का उपयोग जनता के हितों की रक्षा और स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने के लिए किया।
हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक
रहमतुल्लाह सयानी हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने मुस्लिम समुदाय को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनता को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निधन और विरासत
रहमतुल्लाह मोहम्मद सयानी का निधन 4 जून 1902 को हुआ। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। वे आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता, सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की प्रेरणा बने हुए हैं।