बेशक, यह हर मुसलमान के मन में उठने वाला एक ज़रूरी सवाल है कि हम इस्लाम पर सही तरीके से कैसे चलें और अल्लाह को कैसे राज़ी करें। कई बार हम यह मान लेते हैं कि हम पहले से ही अच्छे मुसलमान हैं और अल्लाह हमसे राज़ी होगा, लेकिन लगातार खुद को जांचना और बेहतर बनाने की कोशिश करना ही हमें अल्लाह के करीब ले जाता है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथियों का भी यही तरीका था, वे हमेशा अपनी हरकतों पर नज़र रखते थे ताकि अल्लाह को नाराज़ न करें।
पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शख्सियत: कामयाबी का रास्ता
कुरान हमें बताता है कि एक बेहतरीन मुसलमान कैसे बना जा सकता है:
“तुम्हारे लिए रसूल अल्लाह में बेहतरीन नमूना है उस शख्स के लिए है जो खुदा और रोज़े आखिरत की उम्मीद रखता हो और खुदा की याद बाकसरत करता हो।” (कुरान – 33:21)
इस आयत पर गौर करें तो यह सिर्फ ‘रसूल के तरीके’ की बात नहीं करती, बल्कि ‘रसूल’ की मुकम्मल शख्सियत को बेहतरीन नमूना बताती है। इसमें उनका तरीका भी शामिल है और उनकी संपूर्ण जीवनशैली भी। अब सवाल आता है कि इस बेहतरीन नमूने को कैसे समझा जाए? कुरान इसका जवाब भी देता है:
“और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे जहानों के लोगों के लिए रहमत बनाकर भेजा।” (कुरान – 21:107)
यह आयत बताती है कि पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शख्सियत की बुनियाद रहमत (दया) थी, और हमें अपनी ज़िन्दगी को सिर्फ एक समुदाय के लिए नहीं, बल्कि सारे इंसानों के लिए रहमत बनना है। रहमत के कामों में बहुत से अच्छे कार्य शामिल हैं, जैसे कमज़ोर लोगों की मदद करना, सबसे अच्छे से पेश आना, सच बोलना, धोखा न देना। ये वे बुनियादें हैं जिन्हें रसूल अल्लाह ने कभी नहीं छोड़ा।
इन सबके साथ, एक और महत्वपूर्ण काम था जो उन्होंने हमेशा किया और जिसके लिए मौके बनाए, वह था इंसानों को उनकी कामयाबी का रास्ता बताना और उन्हें सच्चाई से अवगत कराना, ताकि वे सबसे बड़े नुकसान से बच सकें और हमेशा के लिए कामयाब हो जाएं।
पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शख्सियत को न समझने के नुकसान
जब हमने पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शख्सियत को अपना आदर्श बनाना छोड़ दिया, तो हमारा वह रुतबा भी खत्म हो गया। हम चाहे कितनी भी नमाज़ें पढ़ें, रोज़े रखें या दूसरी इबादतें करें, अल्लाह ने ये इबादतें हमारी ज़िंदगियों को बेहतर बनाने के लिए रखी थीं, न कि इसलिए कि हम इनसे घमंड करें या नमाज़ से बाहर निकलकर बुराइयों में शामिल हो जाएं। इसलिए दीन को पूरी तरह समझना और उस पर चलना बेहद ज़रूरी है, वरना आधे-अधूरे दीन के बड़े नुकसान हो सकते हैं। अल्लाह ने फरमाया:
“तो फिर क्या तुम कुछ बातों पर ईमान रखते हो और कुछ से इंकार करते हो? बस तुम में से जो लोग ऐसा करें, उनकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि ज़िंदगी भर की रुसवाई हो और (आखिरकार) क़यामत के दिन सख़्त अज़ाब की तरफ लौटा दिए जाएं, और जो कुछ तुम लोग करते हो, खुदा उससे ग़ाफिल नहीं है।” (कुरान – 02:85)
इसका मतलब यह भी नहीं कि हम बिल्कुल ही दीन से निकल जाएं, क्योंकि उसके अंजाम भी बहुत खतरनाक हैं। इसलिए, जो भी इबादत करें, यह समझकर करें कि क्यों कर रहे हैं, और उससे होने वाले असर को अपनी ज़िंदगी में उतारें।
एक छोटा सा उदाहरण नमाज़ का है। जब हम नमाज़ पढ़ने जाते हैं तो समय की पाबंदी का ध्यान रखते हैं; अगर 9 बजे की नमाज़ 5 मिनट देर से हो तो सबको अजीब लगता है। यही पाबंदी अगर हम अपनी ज़िंदगी में उतार लें, तो दुनिया में एक बड़ी और कामयाब पहचान बना सकते हैं। इसी तरह, दीन के हर रुक्न के बेपनाह और हैरान कर देने वाले फायदे हैं, लेकिन क्योंकि हम उन्हें बस रस्मी तौर पर करने लगे हैं, हम उनके फायदों से महरूम हैं।
इसी तरह, पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ज़िंदगी और शख्सियत को न समझने की भूल हमें अंधेरे में धकेल सकती है, और हमें कोई भी दीन के नाम पर बहका सकता है। लेकिन अगर आपको यह पता होगा कि रसूल अल्लाह का तरीका क्या था, तो आप साफ होंगे कि क्या करना है और क्या नहीं, किस तरह से लोगों से पेश आना है, और क्या है जो कभी नहीं करना।
सच्चा रास्ता: रहमत का तरीका
पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का तरीका हमेशा रहमत का था, फिर चाहे वह किसी के भी साथ क्यों न हो। आज मुसलमान अंधेरे में क्यों भटक रहे हैं और उन्हें कोई रास्ता क्यों नहीं मिल रहा? क्योंकि उन्हें यह पता ही नहीं है कि करना क्या है, और इससे भी ज़्यादा ज़रूरी यह है कि जानने की कोई मंशा भी नहीं है। इस सब का नतीजा यह हो रहा है कि हम कोशिश तो कर रहे हैं कि हालात सही हों, लेकिन जो भी हम कर रहे हैं उससे चीजें और खराब हो रही हैं।
शायद बहुत से लोगों को इस बात पर यकीन भी नहीं है कि यहां पर हर बात का हल मिल सकता है। जब पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने लोगों के बीच अपना पैगाम रखा, तो हालात और भी ज़्यादा खराब थे। वे लोग जो आपकी बेपनाह इज़्ज़त करते थे, अब आपसे बचकर निकलने लगे थे, बहुत से दुश्मन बन गए। लेकिन आपने सच का साथ नहीं छोड़ा, न ही कोई ऐसा कदम उठाया जिसके नुकसान दीन को उठाने पड़ते। बल्कि आप प्यार और मोहब्बत से अपनी बातें बताते गए, साथ ही उनके फायदे भी, और फिर किसी तरह का समझौता भी उन उसूलों से नहीं किया, चाहे वे अपने घरवाले ही क्यों न हों। आपको परवाह थी तो बस सच की। कुछ दिन तो लोगों ने आपका विरोध किया, लेकिन फिर हमेशा के लिए आपके साथ हो गए।
यही तरीका है जो अगर हमने नहीं अपनाया तो न हम कभी कामयाब हो पाएंगे और न ही इस दुनिया में शांति और प्यार फैल पाएगा। इस तरीके को न अपनाने की वजह से हमने पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर भी बहुत से झूठे इल्ज़ाम लगवा दिए, और उनका सही तरीके से हल या जवाब देने के बजाय हम लड़ने लगे, जिसके नतीजे और भी बदतर हो गए।
निष्कर्ष
जब भी आप कुछ करें या किसी से कोई बर्ताव करना हो, तो सोचें कि अगर पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) होते तो क्या करते? यह आपको हमेशा सही रास्ते की तरफ ले जाएगा। अपनी ज़िंदगियों को कामयाब बनाना है तो पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का सच्चा उम्मती बनिए, जो कि सारे जहान के लिए रहमत थे।
