इस्लाम, जिसे अक्सर केवल 1400 साल पुराना धर्म माना जाता है, वास्तव में मानव जाति के इतिहास जितना ही प्राचीन है। यह न केवल एक धर्म है, बल्कि एक जीवन पद्धति है जो मानवता को एक ईश्वर (अल्लाह) की पूजा और नैतिक जीवन जीने का मार्ग दिखाता है। इस लेख में, हम इस्लाम के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पहलुओं का विश्लेषण करेंगे और इस बात पर प्रकाश डालेंगे कि इस्लाम न तो हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) द्वारा स्थापित किया गया था और न ही यह केवल एक विशिष्ट समुदाय तक सीमित है।
इस्लाम की प्राचीनता
इस्लाम का अर्थ है “अल्लाह के प्रति समर्पण” और यह मानवता के प्रारंभ से ही अस्तित्व में है। इस्लाम की शुरुआत दुनिया के पहले इंसान, हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम), के आगमन के साथ हुई थी। आदम को अल्लाह ने धरती पर अपना खलीफा (प्रतिनिधि) बनाया और उन्हें एक ईश्वर की पूजा करने का आदेश दिया। इस्लाम की मूल शिक्षा यही है: एकमात्र सच्चे ईश्वर (अल्लाह) की इबादत करना और उसके आदेशों का पालन करना। यह संदेश मानव इतिहास के हर युग में विभिन्न पैगंबरों के माध्यम से दोहराया गया। इस प्रकार, इस्लाम को केवल 1400 साल पुराना मानना एक भ्रांति है, क्योंकि यह मानवता के जन्म के साथ शुरू हुआ था।
इस्लाम की यह शाश्वत प्रकृति इसे अन्य धर्मों से अलग करती है। यह न तो किसी विशेष समय में शुरू हुआ और न ही किसी एक व्यक्ति द्वारा स्थापित किया गया। बल्कि, यह एक दैवीय व्यवस्था है जो मानवता को सही मार्ग पर ले जाने के लिए बनाई गई थी। इस्लाम का यह दृष्टिकोण यह भी दर्शाता है कि यह एक सार्वभौमिक धर्म है, जो केवल एक समुदाय या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि समस्त मानवता के लिए है।
पैगंबरों का सिलसिला
अल्लाह ने मानवता को सही रास्ता दिखाने के लिए समय-समय पर पैगंबर भेजे। लगभग 124,000 पैगंबर मानव इतिहास में भेजे गए थे, जिनमें से 25 या 26 का उल्लेख कुरान में किया गया है। इन पैगंबरों में हज़रत इब्राहिम (अलैहिस्सलाम), जो लगभग 6,000 से 10,000 साल पहले हुए, और हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम), जो लगभग 5,000 साल पहले हुए, जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं। प्रत्येक पैगंबर का संदेश एक ही था: एक ईश्वर की पूजा करना और नैतिक जीवन जीना।
इन पैगंबरों का उद्देश्य अपने समुदायों को सही मार्ग पर लाना और उन्हें अल्लाह के आदेशों का पालन करने के लिए प्रेरित करना था। उदाहरण के लिए, हज़रत इब्राहिम ने अपने समय में मूर्तिपूजा का विरोध किया और एक ईश्वर की पूजा को प्रचारित किया। इसी तरह, हज़रत नूह ने अपने समुदाय को पापों से बचने और अल्लाह की ओर लौटने की चेतावनी दी। यह सिलसिला हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) तक जारी रहा, जिन्हें अंतिम पैगंबर के रूप में चुना गया।
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का अंतिम संदेश
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को इस्लाम का संस्थापक मानना एक सामान्य भ्रांति है। वास्तव में, वे अल्लाह के अंतिम पैगंबर थे, जिन्हें कुरान के साथ भेजा गया था। उनका संदेश वही था जो पिछले सभी पैगंबरों ने दिया था: एक ईश्वर की पूजा और नैतिक जीवन। हालांकि, उनके संदेश की विशिष्टता यह थी कि यह केवल एक समुदाय या क्षेत्र तक सीमित नहीं था, बल्कि पूरी दुनिया के लिए था।
कुरान में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को इस्लाम का संस्थापक नहीं कहा गया है, और न ही उन्होंने कभी ऐसा दावा किया। वे स्वयं को अल्लाह का दास और रसूल (संदेशवाहक) मानते थे, जिनका कार्य अल्लाह के आदेशों को मानवता तक पहुँचाना था। उनके द्वारा लाया गया कुरान एक ऐसी किताब है जो पिछले सभी दैवीय ग्रंथों की गलतियों को सुधारने और मानवता को अंतिम मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए भेजी गई थी।
ईसाई और यहूदी धर्म का इस्लाम से संबंध
ईसाई और यहूदी धर्म मूल रूप से इस्लाम के ही रूप थे। हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) और हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) भी अल्लाह के पैगंबर थे, और उनके अनुयायी मूल रूप से मुसलमान थे, क्योंकि वे एक ईश्वर की पूजा करते थे। हालांकि, समय के साथ इन धर्मों के अनुयायियों ने अपने पैगंबरों को अल्लाह का पुत्र घोषित कर दिया, जिसके कारण वे इस्लाम के मूल संदेश से भटक गए।
उदाहरण के लिए, ईसाई धर्म में हज़रत ईसा को “ईश्वर का पुत्र” माना गया, जो इस्लाम के एकेश्वरवाद के सिद्धांत के खिलाफ है। इसी तरह, यहूदी धर्म में भी कुछ शिक्षाओं में परिवर्तन हुए, जिसके कारण वह मूल इस्लामिक संदेश से दूर हो गया। इस्लाम के अनुसार, ये परिवर्तन मानव निर्मित थे और अल्लाह के मूल संदेश को विकृत करते थे।
पवित्र पुस्तकों का विरूपण
इस्लाम के अनुसार, बाइबिल और तोराह जैसी पवित्र पुस्तकें मूल रूप से अल्लाह द्वारा भेजी गई थीं। ये ग्रंथ अपने समय में मानवता के लिए मार्गदर्शन का स्रोत थे। हालांकि, इन ग्रंथों में समय के साथ मानव द्वारा मिलावट की गई। कुछ लोगों ने अपने लाभ के लिए इन पुस्तकों की शिक्षाओं को बदल दिया, जिसके कारण इनका मूल संदेश विकृत हो गया।
उदाहरण के लिए, बाइबिल में कई ऐसी बातें जोड़ी गईं जो हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) की मूल शिक्षाओं से मेल नहीं खातीं। इसी तरह, तोराह में भी कुछ परिवर्तन किए गए, जिसके कारण यहूदी धर्म की शिक्षाएँ अल्लाह के मूल संदेश से भटक गईं। इस्लाम का मानना है कि कुरान इन गलतियों को सुधारने के लिए भेजा गया था।
कुरान की भूमिका
कुरान को इस्लाम में अल्लाह का अंतिम और अटल संदेश माना जाता है। इसे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) पर अवतरित किया गया ताकि मानवता को सही मार्ग दिखाया जा सके और पिछले ग्रंथों में हुई गलतियों को सुधारा जा सके। कुरान न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि एक संपूर्ण जीवन पद्धति है जो नैतिकता, सामाजिक न्याय, और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।
कुरान में उन प्राचीन समुदायों का भी उल्लेख है जो अल्लाह के आदेशों का पालन नहीं करने के कारण नष्ट हो गए। उदाहरण के लिए, कौमे लूत (हज़रत लूत का समुदाय) का उल्लेख है, जिन्हें उनके पापों के कारण अल्लाह ने नष्ट कर दिया। ये समुदाय हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से हज़ारों साल पहले मौजूद थे, जो इस बात का प्रमाण है कि इस्लाम का इतिहास मानवता के प्रारंभ से जुड़ा हुआ है।
इस्लाम की शाश्वत प्रकृति
इस्लाम को केवल एक धर्म के रूप में देखना गलत है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जो मानवता को नैतिकता, न्याय, और एकेश्वरवाद की ओर ले जाती है। इस्लाम की शिक्षाएँ समय और स्थान की सीमाओं से परे हैं। यह केवल अरब या 7वीं शताब्दी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर युग और हर समाज के लिए प्रासंगिक है।
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) इस्लाम के संस्थापक नहीं थे, बल्कि वे इसके अंतिम दूत थे। उनका कार्य इस शाश्वत संदेश को पूरी दुनिया तक पहुँचाना था। इस्लाम का यह दृष्टिकोण इसे एक अनूठा धर्म बनाता है, जो मानवता के इतिहास के साथ-साथ विकसित हुआ और आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना हजारों साल पहले था।
निष्कर्ष
इस्लाम एक शाश्वत धर्म है जो मानवता के प्रारंभ से अस्तित्व में है। यह न तो हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) द्वारा स्थापित किया गया था और न ही यह केवल 1400 साल पुराना है। इसके बजाय, यह एक दैवीय व्यवस्था है जो एक ईश्वर की पूजा और नैतिक जीवन जीने पर आधारित है। अल्लाह ने मानवता को मार्गदर्शन देने के लिए विभिन्न पैगंबर भेजे, और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) इस सिलसिले की अंतिम कड़ी थे। कुरान के माध्यम से, अल्लाह ने मानवता को एक ऐसा मार्गदर्शन प्रदान किया जो पिछले सभी ग्रंथों की गलतियों को सुधारता है और समस्त मानवता के लिए एक पूर्ण जीवन पद्धति प्रदान करता है।
इस्लाम की यह शाश्वत प्रकृति इसे एक अनूठा और सार्वभौमिक धर्म बनाती है। यह न केवल एक धर्म है, बल्कि एक जीवन दर्शन है जो हर युग में मानवता को सही मार्ग दिखाने के लिए प्रासंगिक बना रहेगा।