हज, अल्लाह की इबादत का एक पवित्र और अनमोल रुक्न है, जो इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। हर साल लाखों मुसलमान अल्लाह के घर, काबा-ए-मुज़्ज़मा, की ज़ियारत के लिए सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का-ए-मुकर्रमा में एकत्रित होते हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा सालाना धार्मिक आयोजन है, जिसमें दुनिया भर से मुसलमान एकजुट होकर अल्लाह की बारगाह में हाज़िरी देते हैं।
हज हर उस मुस्लिम पर फर्ज़ है जो शारीरिक और माली तौर पर सक्षम हो। यह एक ऐसी इबादत है जो हर मोमिन को अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य पूरी करनी चाहिए, ताकि वह अल्लाह के हुक्म की तामील कर सके और उसकी रज़ा हासिल कर सके।
1- मक्का, काबा और हज की प्राचीनता
मक्का वह पवित्र शहर है जहां हज़रत मुहम्मद ﷺ का जन्म हुआ। मक्का की मस्जिद-ए-हरम में काबा स्थित है, जो इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल है। यह घनाकार संरचना काले कपड़े (किस्वा) से ढकी होती है और हर मुसलमान की नमाज़ का किबला यही है।
काबा का निर्माण: काबा का निर्माण हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनके बेटे हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म से किया था। यह वह पवित्र स्थान है जो अल्लाह की इबादत के लिए बनाया गया और जिसके इर्द-गिर्द हज की कई रस्में अदा की जाती हैं।
हज की रस्में और उनकी तारीखी अहमियत: हज की कई रस्में हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम और उनके परिवार की कुर्बानियों की याद ताज़ा करती हैं। खास तौर पर, वह घटना जब हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम की कुरबानी देने की तैयारी की, लेकिन अल्लाह ने अपनी रहमत से हस्तक्षेप के ज़रिए उन्हें रोक दिया। हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम, जिन्हें ईसाई और यहूदी धर्म में अब्राहम कहा जाता है, तीनों इब्राहिमी धर्मों में एक केंद्रीय और सम्मानित शख्सियत हैं।
हज की एक महत्वपूर्ण रस्म है सई, जिसमें हाजी सफा और मरवा नाम की दो पहाड़ियों के बीच सात बार चलते हैं। यह रस्म हज़रत हाजरा रज़ियल्लाहु अन्हा की याद में अदा की जाती है, जिन्होंने अपने बेटे हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम के लिए पानी की तलाश में इन पहाड़ियों के बीच दौड़ लगाई थी। अल्लाह ने उनकी मेहनत और दुआ को कबूल किया और ज़मज़म का चश्मा अता फरमाया।
2- हज में समानता का पैगाम
हज की खूबसूरती इसकी समानता में है। जहां अन्य इस्लामी इबादतों में प्रायः पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं होती हैं, वहीं हज में पुरुष और महिलाएं एक साथ रस्में अदा करते हैं। यह अल्लाह की बारगाह में महिलाओं और पुरुषों की समानता का प्रतीक है।
3- विशेष ड्रेस कोड (अहराम)
वहीं अहराम (हज के लिए विशेष लिबास) सभी हाजियों के बीच आध्यात्मिक और सामाजिक समानता को दर्शाता है। सभी पुरुष दो बिना सिले सफेद कपड़े पहनते हैं, जो उनकी सादगी और अल्लाह के सामने नम्रता को ज़ाहिर करता है और महिलाएं ढीले-ढाले सफेद पारंपरिक कपड़े पहनती हैं, यह एक सामान लिबास अमीर-गरीब, छोटे-बड़े कला-गोरा के भेद को मिटा देता है।
4- हज पर जाकर मुसलमान क्या-क्या करते हैं?
हज में पांच दिन लगते हैं और ये ईद उल अज़हा के साथ पूरी होती है। हज का सबसे ख़ास हिस्सा है तवाफ़, जिसमें मुस्लिम काबा के चारों ओर सात बार एंटी-क्लॉक चक्कर लगाते हैं। यह हज यात्रा की शुरुआत और अंत में किया जाता है।
मीना शहर और अराफ़ात का मैदान: आधिकारिक तौर पर हज की शुरुआत इस्लामिक महीने ज़िल-हिज की आठ तारीख़ से होती है। आठ तारीख़ को हाजी मक्का से क़रीब 12 किलोमीटर दूर मीना शहर जाते हैं। आठ तारीख़ की रात हाजी मीना में गुज़ारते हैं और अगली सुबह यानी नौ तारीख़ को अराफ़ात के मैदान पहुंचते हैं।
हज यात्री अराफ़ात के मैदान में खड़े होकर अल्लाह को याद करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं। इस स्थान का इस्लाम में विशेष महत्व है क्योंकि ये वही जगह है जहां हज़रत मुहम्मद ﷺ ने अपना आख़िरी ख़ुतबा (उपदेश) दिया था। शाम को हाजी मुज़दलफ़ा शहर जाते हैं और नौ तारीख़ की रात में वहीं रहते हैं। दस तारीख़ की सुबह यात्री फिर मीना शहर लौटते हैं।
जमारात: उसके बाद वो एक ख़ास जगह पर जाकर सांकेतिक तौर पर शैतान को पत्थर मारते हैं। उसे जमारात कहा जाता है। शैतान को पत्थर मारने के बाद हाजी एक बकरे या भेड़ की कुर्बानी देते हैं। उसके बाद मर्द अपना सिर मुंडवाते हैं और महिलाएं अपना थोड़े से बाल काटती हैं।
ईद-उल-अज़हा: उसके बाद यात्री मक्का वापस लौटते हैं और क़ाबा के सात चक्कर लगाते हैं जिसे धार्मिक तौर पर तवाफ़ कहा जाता है। इसी दिन यानी ज़िल-हिज की दस तारीख़ को पूरी दुनिया के मुसलमान ईद-उल-अज़हा या बक़रीद का त्योहार मनाते हैं।
तवाफ़ के बाद हज यात्री फिर मीना लौट जाते हैं और वहां दो दिन और रहते हैं। महीने की 12 तारीख़ को आख़िरी बार हज यात्री क़ाबा का तवाफ़ करते हैं और दुआ करते हैं। इस तरह हज की प्रक्रिया पूरी होती है।
5-हज करने के बाद लोगों में होने वाले बदलाव
हज एक परिवर्तनकारी अनुभव है जो व्यक्ति को आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक रूप से बेहतर बनाने में मदद करता है। हालांकि, ये बदलाव हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे हज के अनुभव को अपने जीवन में कितना आत्मसात करते हैं। कुछ लोग इन बदलावों को स्थायी रूप से अपनाते हैं, जबकि कुछ में समय के साथ ये प्रभाव कम हो सकते हैं।
ईश्वर के प्रति निकटता: हज एक गहन आध्यात्मिक अनुभव है। हाजी (हज करने वाला व्यक्ति) अक्सर अल्लाह के प्रति अधिक निकटता और भक्ति का अनुभव करते हैं। उनकी नमाज़, दुआ और इबादत में नियमितता बढ़ती है।
पापों से मुक्ति का एहसास: इस्लाम में हज को पापों से मुक्ति का एक साधन माना जाता है। इससे हाजी को एक नई शुरुआत का एहसास होता है, जिससे वे अपने जीवन को अधिक धार्मिक और नैतिक रूप से जीने की कोशिश करते हैं।
आत्म-चिंतन और सुधार: हज के दौरान लोग अपने जीवन, गलतियों और उद्देश्यों पर विचार करते हैं, जिससे वे अपने व्यवहार और आदतों में सुधार लाने की प्रेरणा पाते हैं।
नैतिकता और व्यवहार में सुधार: हज के बाद लोग अधिक धैर्य, दयालुता, और सहानुभूति दिखाने लगते हैं। वे गुस्सा, झूठ, और अन्य नकारात्मक आदतों को छोड़ने की कोशिश करते हैं।
नमाज़ और धार्मिक अनुष्ठानों में नियमितता: हज के बाद लोग पांचों वक्त की नमाज़, कुरान पढ़ने, और अन्य धार्मिक कार्यों में अधिक सक्रिय हो जाते हैं।
सम्मान और जिम्मेदारी: हज करने के बाद व्यक्ति को “हाजी” के रूप में सम्मान मिलता है, जिसके साथ धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारियां भी बढ़ती हैं। लोग उनसे अधिक नैतिक और धर्मनिष्ठ व्यवहार की अपेक्षा करते हैं।
आंतरिक शांति: हज का अनुभव लोगों को मानसिक शांति और संतुष्टि प्रदान करता है। वे जीवन की समस्याओं को अधिक धैर्य और सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने लगते हैं।
आत्मविश्वास और उद्देश्य: हज करने के बाद लोग अपने जीवन के उद्देश्य को अधिक स्पष्ट रूप से समझने लगते हैं और आत्मविश्वास के साथ धार्मिक और नैतिक जीवन जीने का प्रयास करते हैं।