हसन इब्न अल-हेथम इस्लामी स्वर्ण युग के वैज्ञानिको में प्रसिद्ध नामों में से एक है। इस दुनिया में आकर मुस्लिम वैज्ञानिकों और विचारकों ने अपने उत्कृष्ट कामों से इतिहास में नाम कमाया, इब्न अल-हेथम उन प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक हैं और ये हमेशा लोगों के जेहन में रहेंगे।
हसन इब्न अल-हेथम के बारे में-
हसन इब्न अल-हेथम (Hasan Ibn al-Haytham) जिनका लैटिन नाम अल्हाज़ेन (Al-hazen) है, इनका पूरा नाम ‘अबू अली अल-हसन इब्न इब्न अल-हेथम’ था। मध्ययुगन यूरोप में, इब्न अल- हेथम को टॉल्मेयस सेकंडस (टॉल्मी द्वितीय) या सिर्फ “भौतिक विज्ञानी” के नाम से जाना जाता था।इनका जन्म सन् 965 में बसरा में हुआ था। हसन इब्न अल-हेथम एक अरब गणितज्ञ, खगोलविद, और इस्लामी स्वर्ण युग के भौतिक विज्ञानी थे।
हसन इब्न अल-हेथम को अग्रणी वैज्ञानिक विचारकों में से एक माना जाता है। इब्न अल-हेथम ने विज्ञान के भौतिक प्रकाशिकी शाखा के लिए मार्ग प्रशस्त किया। हेथम ने दृश्य बोध (Visual perception), प्रकाशिकी (optics) और प्रकाश के सिद्धांतों को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मिस्र के बादशाह द्वारा नील नदी पर एक बांध बनाने में मदद करने के लिए इब्न अल-हेथम को मिस्र आमंत्रित किया गया था। लेकिन मैदान का दौरा करने के बाद, उन्होंने इस परियोजना पर काम करने से इनकार कर दिया और यह उनकी 10 साल की हिरासत का कारण बन गया।
जेल में हेथम को एक अंधेरे कमरे में रखा गया था जहां एक सुराख से थोड़ा सा प्रकाश अंदर आता था। इस अंधेरे कमरे में प्रकाश के प्रवेश के विभिन्न अवलोकनों के माध्यम से, उन्होंने प्रकाश और दृष्टि के मूल पहलुओं को समझने में बड़ी सफलताएं हासिल कीं। जेल में हेथम ने दृश्य बोध, प्रकाशिकी और प्रकाश के सिद्धांतों को विकसित किया।
जेल में अपनी सिद्धांतों और परिकल्पनाओं का परीक्षण करने के लिए कई प्रयोगों और जांच की पद्धति का विकाश किया जिससे विविध परिणाम सामने आए। इन परिणामों और सिद्धांतों को बाद में आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति के रूप में मान्यता मिली।
इस हिरासत के तहत, उन्होंने “किताब अल-मनाज़िर” (प्रकाशिकी की पुस्तक) पुस्तक लिखी और बाद में इसका लैटिन “डी एस्पेक्टिबस” अनुवाद किया गया। अल-हेथम के विचारों ने कई यूरोपीय विद्वानों को बहुत प्रभावित किया। उनके सभी प्रयोगों और सिद्धांतों के कारण, कई लोग उन्हें एक मौलिक व्यक्ति मानते हैं और हेथम का नाम प्रकाशिकी के इतिहास में सबसे ऊपर है। इस लिए इब्न अल- हेथम “आधुनिक प्रकाशिकी का जनक” कहा जाता है।
हसन इब्न अल-हेथम की प्रमुख उपलब्धियां-
अंधेरे कमरे में प्रकाश के प्रवेश के विभिन्न अवलोकनों के माध्यम से, उन्होंने प्रकाश और दृष्टि के मूल पहलुओं को समझने में बड़ी सफलताएं हासिल कीं जिससे हेथम ने दृश्य बोध, प्रकाशिकी और प्रकाश के सिद्धांतों को विकसित किया। हसन इब्न अल-हेथम ने ही सबसे पहले यह बताया की चीज़े हमें तभी दिखती है जब प्रकाश उस पर पडकर हमारे आंखों में पहुंचता है। जबकि उस समय तक ग्रीक साइंस ये कहती थी की आँखों में से एक रौशनी निकलती है, जो चीज़ो को जा कर पड़ती है, जिसके कारण हम देख पाते है, इसपर इब्न अल-हेथम ने कहा की: “ये बेबुनियादी बात है” क्यूंकि अगर आँखों से रौशनी निकलती है जिससे हम देख पाते हैं तो चीज़ों को रात में हम क्यों नहीं देख पाते?
इब्न अल-हेथम को प्रकाश और दृष्टि की प्रकृति की व्याख्या करने का श्रेय दिया जाता है। इन्होंने यह पता लगाया की आँखे कैसे देखती है, और इसी आधार पर एक कमरे को आंख की सक्ल में बदल दिया और उसमे एक छोटा सा छेद कर दिया जिससे सूरज की किरणे कमरे के सामने की चीजों से रिफ्लेक्ट हो कर उस कमरे के होल से जाकर कमरे की दीवार पर एक प्रतिबिंब बनाती थी। इस अंधेरे कमरे को उन्होंने “अल-कमरा” कहा। यह दुनिया का सबसे पहला “पिनहोल कैमरा” था। कैमरा लफ्ज़ अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है “अंधेरे में एक कमरा”।
विभिन्न अध्ययनों के दौरान, उन्होंने लेंस, रेटिना और कॉर्निया जैसे आंखों के कई भागों का नाम दिया और पता लगाया की आँख कैसे काम करती और अगर कमज़ोर हो जाए तो कैसे इन्हे शीशे के ज़रये सही किया जाए।
इब्न अल-हेथम ऐसे पहले शख्स थे जिन्होंने कहा की:– “अगर कोई बात, कोई कह दे तो मानना ज़रूरी थोड़ी है, बल्की हम खुद अनुभव करेंगे”। इसीलिए अपने सभी प्रयोगों के दौरान, उन्होंने प्रयोगात्मक विज्ञान में उच्च मानक स्थापित किए जिसका अनुसरण बाद के सभी वैज्ञानिक प्रयोगों में किया जाने लगा। इसीलिए इन्हें पहला वैज्ञानिक भी माना जाता है जिन्होंने अपने प्रयोगों द्वारा अपने विचारों और संकल्पनाओं को सिद्ध किया।
यूनिस्को ने सन् 2015 को “दी लाइट इयर” के रूप में इब्न अल-हैथम के द्वारा प्रकाशिकी पर कार्यों की 1000 वीं वर्षगांठ मनाई।
लगभग सन् 1040 में 74 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। जीवन भर इब्न अल हथम ने विविध नवीन बिंदुओं को प्रस्तुत किया जो बाद में सिद्धांतों में बदल गए। उनका जन्म रचनात्मक काल में हुआ था जिसे मुस्लिम सभ्यता का स्वर्ण युग भी कहा जाता है । इस अवधि में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और चिकित्सा में बड़ी प्रगति हुई है। इस युग ने कई खोजों और वैज्ञानिक विचारकों को सामने लाया जिन्होंने दुनिया को पूरी तरह प्रभावित किया, लेकिन फिर भी इन्हें वह सम्मान नहीं दिया गया जो उनका हक था।