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> इतिहास > स्वतंत्रता सेनानी > बॉलीवुड एक्टर शाहरूख खान के नाना शाहनवाज खान जिन्होंने लाल किले से ब्रिटिश झंडा उतारकर फेका और तिरंगा फहराया।

बॉलीवुड एक्टर शाहरूख खान के नाना शाहनवाज खान जिन्होंने लाल किले से ब्रिटिश झंडा उतारकर फेका और तिरंगा फहराया।

एо अहमद
एо अहमद
एо अहमद
लेखकएо अहमद
Founder and Editor
मैं आफताब अहमद इस साइट पर एक लेखक हूं, मुझे विभिन्न शैलियों और विषयों पर लिखना पसंद है। मुझे ऐसा निबंध और ब्लॉग लिखना अच्छा लगता...
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Published: 30/06/2025
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5 मिनट में पढ़ें

भारत की आजादी की लड़ाई में कई वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, और उनमें से एक चमकता सितारा थे मेजर जनरल शाहनवाज खान। आजाद हिंद फौज के इस महान सैनिक ने न केवल नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ युद्ध लड़ा, बल्कि आजादी के बाद भी देश सेवा में अपना योगदान दिया। उनकी कहानी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो साहस, समर्पण और देशभक्ति का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती है। आइए, इस लेख में हम मेजर जनरल शाहनवाज खान के जीवन, उनके संघर्ष और उनकी विरासत को विस्तार से जानते हैं।

हाईलाइट्स
प्रारंभिक जीवन और सैन्य प्रशिक्षणआजाद हिंद फौज में शामिल होनाकोहिमा की लड़ाई और सुभाष ब्रिगेडलाल किले का मुकदमाआजादी के बाद का योगदानराजनीति और सामाजिक सेवाविरासत और अंतिम यात्रायुवाओं के लिए प्रेरणा

प्रारंभिक जीवन और सैन्य प्रशिक्षण

मेजर जनरल शाहनवाज खान का जन्म 24 जनवरी 1914 को ब्रिटिश इंडिया के रावलपिंडी (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता, टिक्का खान, ब्रिटिश भारतीय सेना में उच्च पद पर थे, जिसके कारण शाहनवाज को बचपन से ही अनुशासन और सैन्य जीवन का महत्व समझ में आ गया था। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया और 1935 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हो गए। यह वह दौर था जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की आग में जल रही थी।

शाहनवाज की तैनाती सिंगापुर में हुई, जहां उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना ने ब्रिटिश भारतीय सेना के सैकड़ों सैनिकों को बंदी बना लिया था, जिनमें शाहनवाज खान भी शामिल थे। लेकिन यह बंदी बनना उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।

आजाद हिंद फौज में शामिल होना

1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर पहुंचे और आजाद हिंद फौज के बैनर तले भारतीय सैनिकों को एकजुट करने का अभियान शुरू किया। नेताजी का जोशीला नारा, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा”, हर सैनिक के दिल में देशभक्ति की आग जला गया। शाहनवाज खान इस नारे से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ब्रिटिश सेना छोड़कर आजाद हिंद फौज में शामिल होने का फैसला किया। नेताजी ने उनकी बहादुरी और नेतृत्व क्षमता को पहचाना और उन्हें मेजर जनरल के पद पर नियुक्त किया।

कोहिमा की लड़ाई और सुभाष ब्रिगेड

1944 में शाहनवाज खान ने आजाद हिंद फौज की एक टुकड़ी का नेतृत्व किया, जिसने भारतीय सीमाओं के पास ब्रिटिश सेना को करारी शिकस्त दी। उनकी रणनीति और साहस ने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया। इस जीत से प्रभावित होकर नेताजी ने सितंबर 1945 में सुभाष ब्रिगेड का गठन किया, जिसका नेतृत्व शाहनवाज खान को सौंपा गया। इस ब्रिगेड ने कोहिमा की लड़ाई में ब्रिटिश सेना के खिलाफ मोर्चा संभाला।

हालांकि, अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के कारण जापान ने आजाद हिंद|fouj को समर्थन देना बंद कर दिया। इस मुश्किल घड़ी में भी शाहनवाज खान ने हार नहीं मानी और 1945 में ब्रिटिश सेना के खिलाफ अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया। इस युद्ध में आजाद हिंद फौज को भारी नुकसान हुआ, और शाहनवाज खान सहित कई सैनिकों को 13 मई 1945 को ब्रिटिश सेना ने हिरासत में ले लिया।

लाल किले का मुकदमा

ब्रिटिश सरकार ने शाहनवाज खान और उनके साथियों पर राजद्रोह का आरोप लगाया और दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया। इस मुकदमे ने पूरे देश में हलचल मचा दी। मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने केवल शाहनवाज की ओर से याचना करने की पेशकश की, लेकिन देशभक्ति से भरे शाहनवाज ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उन्होंने अपने साथियों के साथ एकजुटता दिखाई और कहा कि वह अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे।

मुकदमे के दौरान जवाहरलाल नेहरू और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अन्य नेताओं ने उनका समर्थन किया। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन देश में बढ़ते जनआंदोलन और नई राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया।

आजादी के बाद का योगदान

आजादी के बाद शाहनवाज खान ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर देश सेवा का नया अध्याय शुरू किया। 1947 में जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें कांग्रेस सेवा दल के सदस्यों को सैन्य प्रशिक्षण और अनुशासन सिखाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी। शाहनवाज ने 1947 से 1951 तक सेवापति के रूप में इस भूमिका को बखूबी निभाया।

जब भारत आजाद हुआ, तो शाहनवाज खान को लाल किले से ब्रिटिश झंडा उतारकर तिरंगा फहराने का गौरव प्राप्त हुआ। यह उनके जीवन का एक ऐतिहासिक क्षण था, जो उनकी देशभक्ति का प्रतीक बना।

राजनीति और सामाजिक सेवा

शाहनवाज खान ने मेरठ लोकसभा सीट से 1951, 1957, 1962 और 1971 में चुनाव जीता और केंद्रीय मंत्री के रूप में देश की सेवा की। उन्होंने विभिन्न समुदायों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास किए। उनकी किताब “माई मेमोरी ऑफ द आईएनए एंड इट्स नेताजी” में आजाद हिंद फौज के अनुभवों और नेताजी के साथ उनके संबंधों का जीवंत वर्णन है।

विरासत और अंतिम यात्रा

मेजर जनरल शाहनवाज खान का निधन 9 दिसंबर 1983 को लखनऊ में हुआ। उन्हें दिल्ली की जामा मस्जिद के पास कब्रिस्तान में दफनाया गया। उनकी मृत्यु के साथ ही भारत ने एक सच्चा देशभक्त और वीर सैनिक खो दिया, लेकिन उनकी कहानी आज भी लाखों युवाओं को प्रेरित करती है।

युवाओं के लिए प्रेरणा

शाहनवाज खान की कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची देशभक्ति और साहस के सामने कोई बाधा टिक नहीं सकती। उन्होंने न केवल युद्ध के मैदान में, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी देश के लिए काम किया। आज के युवाओं को उनसे यह सीख लेनी चाहिए कि अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना और देश के लिए समर्पित होना कितना महत्वपूर्ण है।
मेजर जनरल शाहनवाज खान भारत की आजादी के उन गुमनाम नायकों में से एक हैं, जिनके बलिदान और साहस ने देश को आजादी की राह दिखाई। उनकी कहानी न केवल इतिहास का हिस्सा है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो अपने देश के लिए कुछ करना चाहता है। आइए, हम उनके योगदान को याद करें और उनकी देशभक्ति को अपने जीवन में उतारें।


मेजर जनरल शाहनवाज खान भारत की आजादी के उन गुमनाम नायकों में से एक हैं, जिनके बलिदान और साहस ने देश को आजादी की राह दिखाई। उनकी कहानी न केवल इतिहास का हिस्सा है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो अपने देश के लिए कुछ करना चाहता है। आइए, हम उनके योगदान को याद करें और उनकी देशभक्ति को अपने जीवन में उतारें।

क्या आपको शाहनवाज खान की यह कहानी प्रेरणादायक लगी? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं और इस लेख को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें ताकि अधिक से अधिक लोग इस महान क्रांतिकारी के बारे में जान सकें।

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